भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बचपन - 5 / हरबिन्दर सिंह गिल
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:13, 2 मई 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरबिन्दर सिंह गिल |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जब बचपन याद आता है
चारों तरफ जमघट हो जाता है
अनगनित प्रश्नों का।
एक तरफ है, मानव का अहं
दूसरी तरफ है, बचपन का भोलापन।
एक तरफ है, बचपन का अपनापन
दूसरी तरफ है, मानव का छल।
एक तरफ है मानव का अपना स्वार्थ
दूसरी तरफ है, बचपन का यथार्थ।
एक तरफ है, बचपन की गहनता
दूसरी तरफ है, मानव का उथलापन।
एक तरफ है, मानव का काल्पिनिक भविष्य
दूसरी तरफ है, बचपन का वास्तविक वर्तमान।