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बचपन - 9 / हरबिन्दर सिंह गिल

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बचपन और विचारों में
एक गहन सम्बन्ध है
ये विचार ही
जीवन का आधार है।
जो कभी भी एका-एक नहीं बनते।
ये बनते हैं
माँ-बाप के व्यक्तित्व की खुशबू से।
ये बनते हैं
दोस्ती के सच्चाई की मिठास से।
ये बनते हैं
स्कूल के अनुशासन के बंधनों से
ये बनते हैं
सहपाठियों के अपनेपन के लगाव से
ये बनते हैं
खेल मैदानों में आपसी मेल जोल के स्वाद से।
ये बनते हैं
रूचि के अंतराल में छिपे रत्नों से।
ये बनते हैं
स्वप्नों की दुनियाँ में घटित घटनाओं से
ये बनते हैं
ठोकरों की दर्द में छिपे दृढ निश्चय से
ये बनते हैं
अपने मस्तिष्क के अंदर उभरती किताब से।