Last modified on 2 मई 2022, at 00:17

बचपन - 12 / हरबिन्दर सिंह गिल

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:17, 2 मई 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरबिन्दर सिंह गिल |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हाँ, मुझे कुछ-कुछ प्रतीत हो रहा है
जब अपने अतीत को आज झांकता हूँ
रंग कुछ सुनहरा चमकीला था
इसलिये ही तो बचपन स्वर्णीम कहलाता है।

बाद में मानव अगर
हीरे भी कमा ले
उसके चमक में वो रोशनी न होगी।

बाद में मानव भिखारी भी बन जाए
उसकी कालिख में भी
बचपन की अपनी ही चमक होगी।

यह उस सुनहरे बचपन का अपना रंग है
जो किसी भी रंग से प्रभावित नहीं होता।
परन्तु मानव ने
अपने ही भविष्य की चाह में
कभी नहीं कोशिश की
याद करूँ
बीते हुए दिन मानवता के बचपन के
जब मानव बंदर था
और उसको आभास नहीं था
अपने आप का
वह भी मानव है।