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बचपन - 32 / हरबिन्दर सिंह गिल
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”बचपन कहीं तनाव के वातावरण में
खोकर न रह जाए
इसे प्रकृति के गीतों से बहलाते रहे
प्रभात की शीतल हवाओं से महकाते रहो
ढलते सूरज की रोशनी से मोहक बनाते रहे
और चाँद की चाँदनी से प्यार करना सिखाओ।“
और तारों की दुनियाँ में ढूंढे
अपने पूर्वजों के चमकते सितारों को
जो निहार रहे हैं, दूर नील गगन से
उस बचपन को जो उनकी देन है।
कहीं यह बचपन तनावग्रस्त हो गया तो
बहुत कहर ढल जाएगा आने वाले कल पर
क्योंकि मादक द्रव्यों के व्यापारी
लिये फिरते हैं झूठी दुनिया के सपने
और झुलसा कर रख देते हैं, फूल से दिलों को।
तेजाब की दुनिया के इन क्रूर मानवों ने
समय को भी बांधकर रख दिया है
अपनी दौलत की जंजीरों से।