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हम तुम जब मिलते हैं / हरिवंश प्रभात

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हम तुम जब मिलते हैं, जी भर बातें कर लेते हैं,
उन बातों के डोर पकड़, कुछ रातें जी लेते हैं।।
वैसे पंख सभी चिड़ियों को
रंग मिले फूलों को,
हरियाली सावन ने पायी
मस्त पवन झूलों को।

पर तेरी शीतल छाया में गुज़रे जो पल मेरे,
उन पल के हम छोर पकड़, कुछ रातें जी लेते हैं।।
यूँ सागर के सीने में
मोती होता है होगा,
पूनम की रातों में अमृत
टपका करता होगा।

पर जो तेरे होठों के प्याले से प्यार टपकते हैं,
उन प्यालों की धार पकड़, कुछ रातें पी लेते हैं।।
नदियों की जल-धारों पर
मन प्यासा विचरण करता,
इन्द्रधनुष के पथ पर
तेरे पग के दर्शन करता।

कहते सभी गुलाब तुम्हें, पर दिल मेरा डरता है,
नाज़ुक मेरे एहसासों को, काँटें छिल लेते हैं।।
मेरा सपना ले बारात
जाये अगवानी करना,
आस संजो बैठा कब से
मत आनाकानी करना।

रस्मों के बंधन में जो जीना चाहें वो जानें
हम तो भावों के मंडप से दुनिया रच लेते हैं।
तेरी खुशबू के आगे
जग कस्तूरी झीनी फीकी,
मुस्कानों के आगे स्वर्गिक
सब ये रंगीनियाँ फीकी।
जिसको जनम दुबारा लेने की है ज़िद तो होवे,
सब जन्मों को मिलन के धागे से हम सी लेते हैं।