भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तेरे कंधों पर नवयुवको / हरिवंश प्रभात

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:34, 16 मई 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंश प्रभात |अनुवादक= |संग्रह=ग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तेरे कंधों पर नवयुवको, युग की लाज बचाना,
चाह रही है आज होलिका फिर प्रहलाद जलाना।

लूट का है बाज़ार गर्म
ना दुःख का पारावार
सबका जप्त ईमान
देश में होता हाहाकार,
फंस गयी जीवन नैया सबकी, तुम उस पर लगाना।
चाह रही है आज होलिका.....

आह सिसकती मन कुंठित है
बिछुड़ा शांत सवेरा
मानव दानव बने जा रहे
हर घर में अंधेरा,
मरी जा रही मानवता पर नैतिक भाव जगाना।
चाह रही है आज होलिका.....

बचपन रोये, यौवन तरसे
हर मेहनत बंधक है
अत्याचार की आग लगी
हर नजर हिरण्य कश्यप है,
नरसिंह बनकर व्याप्त विषमता का तुम गला दबाना।
चाह रही है आज होलिका.....