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मेरी बगिया सुबहो शाम / हरिवंश प्रभात

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मेरी बगिया सुबहो शाम, तुम आया जाया करना,
अगर फूलों को तोड़ोगे तो कलियों पर दया करना।

बहुत कमसिन और नाज़ुक होती हैं कचनार की डाली
बहुत दिलकश तरोताज़ा तेरे रुखसार की लाली,
कहीं लिपटे नहीं आंचल निगाहों से छुआ करना।

खुलापन मौजों से तर है, नज़र में सौम्यता भी है
संवेदन भी है, भावुक भी, फिज़ां में रम्यता भी है,
नहीं मौसम के बदले भाव तुम हर पल नया करना।

कभी पागल नहीं होते जो पत्थर के जिगर होते
उधर बिछ जाती हैं कलियाँ कदम तेरे जिधर होते
हमारे दिल के पैमाने से भी कुछ तो पिया करना।

तेरा मिलना रूमानी-सी नयी रफ़्तार देता है
तेरी पायल से गीतों में मधुर विस्तार होता है,
जो बिखरे प्यार की खुशबू तो दिल का भी कहा करना।

लिहाजा प्यार की आवाज़ बन कोई पुकारे तो
छलकते सब्र के प्याले अगर कोई निहारे तो,
दहकते प्यार के शोलों को मुसकराकर हवा देना।