भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुछ बातें ऐसी होती है / हरिवंश प्रभात

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:49, 16 मई 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंश प्रभात |अनुवादक= |संग्रह=ग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुछ बातें ऐसी होती है,
कहने वाला कह देता है।

माँ कहती है कि ”ऐ बबुआ
कहिया तोहरा नौकरी लागी“
बेटा कहता आँसू पी, ”जब
नौकरी से दूर उमर भागी“,
जी करता फूँक दूँ दुनिया को
जब देख के हम बेकारों को
एक अनपढ़ भी हँस देता है।

गणतंत्र बचाओ सब कहते,
पा कुर्सी सब घायल करते,
वादों को ताखों पर रखकर
मनमानी धारा बन बहते।
आश्वासन का ज़हर पिलाता
जातिवाद को प्रश्रय देता
जो भी कहलाता नेता है।

बाढ़ में जब हम बहते थे
भीषण संकट में मरते थे
जो जन नेता कहलाते हैं
वो नभ से नज़ारा करते थे,
भाषण देने को खड़ा हुआ
थैली पाने को अड़ा हुआ
जिसका आजन्म चहेता है।

घर की बेटी जवान हुई है
सबकी नींद हराम हुई है
बेटा बैल बिकाऊ हो गये
सूरज रहते शाम हुई है।
अपनी डफली राग है अपना
सबका मुश्किल नाम पकड़ना
जो भी ईमान विक्रेता है।

गांधी को गोली मिलती है
ईशा को सूली मिलती है
सुकरात हलाहल पी जाते
अंधेर की नगरी चलती है।
ना प्रतिभा को चाहने वाला
आस कफन की छोड़ निराला
अंतिम श्वांसा गिन देता है।