भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मन का खिला पलाश / हरिवंश प्रभात
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:54, 16 मई 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंश प्रभात |अनुवादक= |संग्रह=ग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मन का खिला पलाश, पुकारा करता है
आमंत्रण मधुमास तुम्हारा करता है।
लहराती चैती फसलों का तन मन डोले
पछुआ हवा मचलती आ दरवाज़ा खोले,
दिल से मौसम तुम्हें निहारा करता है।
आमंत्रण मधुमास.....
अमराई में बैठी कोयल राग सुनाये
स्नेह सरोवर भरा बसंती फाग सुनाये
महुआ मादक गंध भी हारा करता है।
आमंत्रण मधुमास...
प्राणों की बांसुरी बजी ज्यों रेशम डोरी
स्मृति आंचल में लिपटी जैसे-चाँद चकोरी
अन्न खलिहान में स्वर्ग उतारा करता है।
आमंत्रण मधुमास....
बंधन कसते जाते औरों से मत पूछो,
नंगे पाँव चला क्यों भंवरों से मत पूछो,
प्यारा नेह कलश भिनसारा करता है।
आमंत्रण मधुमास....