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नये सिरे से नये दौर में / हरिवंश प्रभात

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नये सिरे से नये दौर में
पहुँचो आज विचार में
जिनके दिलों में प्यार वतन का
हम हैं उसी कतार में।

बुनियादी परिवर्तन की हम बात यहाँ करनेवाले,
सही बात है नये-नये कुछ प्रतिमान गढ़ने वाले,
आत्मसात हो दर्द पराया
बस इसकी दरकार है।

कदम बढ़े जो प्रगति पथ पर ध्यान रहे वे रुकें नहीं
हिम्मत व हौसले का परचम, विश्व पटल पर झुके नहीं,
अपना मंदिर, अपनी मस्जिद
क्या रखा तकरार में।

खुद को जब तक हम ना बदलें, दुनिया को क्या बदलेंगे
बिना बचाये मानव मूल्य के भाव कहाँ फिर उबलेंगे,
मिल जाये सबको हक अपना
क्या कहना विस्तार में।

अलग समय और व्यक्ति के, दृष्टि कोण हो सकते हैं,
नये धरातल हो सकते हैं, नये व्योम हो सकते हैं,
हाथ पहुँच जाय आशा की
संभावना के द्वार में।