भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रात और हवा / दिनेश कुमार शुक्ल

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:40, 17 मई 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनेश कुमार शुक्ल |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

फूली सितवसना रातरानी
उर के अँगनारे में कचनार विहँसे
झमके जुन्हाई में केतकी के पायल
गन्ध-भार लिये पवन थिरक-थिरक कहाँ चला
झाड़ में गुलाब के होकर भी घायल
खुली फिर यादों की खिड़की पुरानी
फूली सितवसना रातरानी

धुन्ध की नदी में जा छोड़ दिया शिथिल तन
मिहराब सायों के टूट-टूट बिखर गये
सन्नाटा धमकी दे गया एक झूठी-सी
डरकर तुषारकण छुप जाने किधर गये
खनक पड़ी दुलराई हँसी अनजानी
फूली सितवसना रातरानी

लाँघ कर अपरिचय के विन्ध्याचल
पवन जब पहुँचा स्पर्शों के किष्किंधा
खँडहरों में बैठे उल्लू सब हूक पड़े
हवा हुई रोमांचित सिहरी योजनगन्धा
फैल गयी दिशा-दिशा गन्ध अनजानी
फूली सितवसना रातरानी

रुद्राक्षमाला में मणि-सी पिरो गया
नटखट वह जुगनू अँधेरे में बार-बार
और शाल्मली के उस बूढ़े दरख्त से
गले मिला गहराया बैरागी अन्धकार
रची गयी भूतों की इस नयी कहानी
फूली सितवसना रातरानी।