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असत्य का कवच / दिनेश कुमार शुक्ल

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असत्य का कवच
आभार
भाई असत्य
तुम्हारा आभार
कि तुम्हारे काले लबादे के भीतर
क्या-क्या छुप जाता है
कभी-कभी तो सत्य को भी
लेनी पड़ती है शरण
तुम्हारी ही गोद में

अब देखो न जब गुलामों के व्यापारियों की सन्तानें
टीवी चैनल पर मानवाधिकारों की
चलाती हैं डिबेट तो वह खूसट पुरातनपन्थी
जो दुशाला ओढ़े खड़ा है
और जो उन्हीं का चचेरा भाई है
कितनी आसानी से
परास्त हो जाता है वाद विवाद में
फिर भी मार ले जाता है मैदान-
कांट्रैक्ट पर कांट्रैक्ट
फिर मिलकर सब घर जाते हैं
और मिल-बाँट कर दिन भर की लूट
के मजे उड़ाते हैं
और विज्ञापनों से उनके टीवी चैनल की आय
दुगुनी से चौगुनी हो जाती है
भाई असत्य
तुम्हारी जेब में पड़ा-पड़ा सत्य
सूखे हुए पेन की तरह
सिर्फ चुभोने का काम कर सकता है
और यह कोई छोटी बात नहीं!