दो आँगन वाले घर / दिनेश कुमार शुक्ल
आँगन तो आँगन, जब घर जैसा कुछ भी न
बचा हो घरों में, ऐसे में भी दिख ही जाते हैं
घर कभी न कभी-झलकते हुए किसी के
हावभाव में। हो सकता है कोई यूँ ही पूछ दे
कहाँ है आपका घर और आपको अचकचाते
देख चला जाय दो-सुखना गुनगुनाते हुए,
झोला झुलाते हुए। तहसीली कस्बों के चौक में
या पुराने गाँव के उजड़ते हिस्सों में आपको
याद आएँगे दो आँगन वाले मकान जब आपके
सामने खड़े मुस्कुरा रहे होंगे अन्तर्यामी और
बहिर्यामी एक साथ गलबहियाँ डाले। यहाँ
साफ करता चलूँ कि दो-मुँहे साँप से निरापद
कोई साँप नहीं और दो-मुँहे आदमी से
जहरीला साँप नहीं। इसका यह
मतलब नहीं कि दो दालों वाले बीज, और दो
आँगन वाले मकानों का भी विश्लेषण आप
इसी पद्धति से करें। या शब्द और अर्थ वाली
अनन्यता को आप इस सन्दर्भ में याद ही न
करें। याद रखें दो आँगन वाले घरों के पीछे
छिपा होता है एक घर के उजड़ने का दर्द
जिसे दीवार फोड़ कर मिला लिया गया
जीवित बचे घर में। हो सकता कभी प्लेग
फैलने के बाद या किसी अकाल के बाद या
कर्ज में सामूहिक आत्महत्या के बाद ऐसा
हुआ हो। एक घर हो सकता है एक भाई का
रहा हो दूसरा दूसरे भाई का। हो सकता है
एक घर देनदार का रहा हो दूसरा लेनदार का।
क्या पता दो आँगन वाला
मकान तब आया हो अस्तित्व में जब घरगिरी
रोकने के ख्याल से बगल के खाली पड़े घर
को बसे हुए घर से जोड़ दिया गया हो। खँडहर
होता हुआ मकान आसपास के घरों को
भी अपने साथ धँसाने में लगा रहता है। बाहर
वाला आँगन आकाश का और भीतर वाला
पानी, पृथ्वी और अग्नि का। बाहर वाले आँगन
में भोज, भजन, बरात, पंगत निबटती। या टिक
जाता कोई अतिथि। या विदाई के लिए तैयार
कोई खाँसता खखारता वृद्ध कुछ दिन के लिए
बाहर के आँगन की दालानों में लिटाया जाता
सेवा सुश्रुषा अब यहीं सब। बाहर वाले आँगन
से हो कर ही लड़कियाँ जातीं ससुराल, युवक
जाते कानपुर, कलकत्ता, और यहीं सजती
अन्तिम यात्राएँ। घर जब घर लौटता तो बाहर
वाले आँगन में आकर उतारता अपने कवच
शिरस्त्राण और हाथ पाँव धो कर घर में जाता।
और बहुएँ भी पहली रात गुजारती बाहरी
आँगन की किसी दालान में, उसके बाद ही
आती कोहबर की रात। भीतरी आँगन में।
भीतरी आँगन से बाहर आने वाले किसी गीत
के टुकड़े के साथ आती दाल में लगी छौंक
की सुगन्ध या सिसकी वह भी जब कभी भूले
भटके। भीतर के आँगन में अल्पनाओं से भरे
फर्श पर आँसुओं का नमक और टूटी हुई
चूड़ियों का काँच अक्सर चुभ जाता पैर में
लेकिन उफ तक निकलने पर प्रतिबन्ध। इस
आँगन में आकाश कम था सो बहुत कम आता
सूर्य किन्तु चन्द्रमा देर तक टिकता। तिस पर भी
यहाँ न कोई असूर्यम्पश्या न कोई चन्द्रमुखी। वर्षा का
संगीत भीतरी आँगन में अपने सम्पूर्ण राग और
निनाद के साथ बजता। जब कि बाहरी आँगन
में वर्षा बिखरी-बिखरी लगभग अश्रव्य ही
रहती। भीतरी आँगन में रहता था इतिहास और
बाहरी आँगन में वर्तमान भी मुश्किल से ही
टिकता। घंडौची, रसोई, पूजाघर और जच्चगी
वाली दालानों से घिरा भीतरी आँगन कभी-कभी
छोटे से नीम या मँझोले मौलसिरी का भी घर
होता। अन्तेवासियों में इसीलिए पेड़ पर रहने
वाली चिड़ियाँ भी शामिल थीं पूरी तरह। भीतरी
आँगन में कभी तो दिन पल भर को टिकता और
कभी पहाड-सा काटे न कटता, जबकि बाहरी
आँगन में समय सम पर ही बहता रहता
अलक्षित। भीतरी आँगन में हर घड़ी वक्त एक
नयी साड़ी बदल कर आता सुबह की सफेद,
दुपहर की पीली, सन्ध्या की मटमैली, रात की
बैंजनी वक्त की एक-एक कोशिका साफ-साफ
दिखती थी भीतरी आँगन में जैसे झलझलाती है
बहुत गोरी स्त्री की त्वचा कम्बु कंठ पर। भीतर
के आँगन में मक्खियों और जूठन के साथ-साथ
ईर्ष्या अन्तःकलह, एनीमिया, पेट में कृमि और
धीरे-धीरे पनपते रोगों का वास था। बाहर का
आँगन आग में तपाई गयी थाली-सा कीटाणुरहित
स्वच्छ और निर्जन ही रहता प्रायः। शिशुओं और
स्त्रियों और नमी की महक से दम घोटता हुआ
भीतरी आँगन का उच्छवास बाहरी आँगन में
कभी-कभी आकर ज्वालामुखी-सा फट पड़ता
भूकम्पित पूरा घर थर्राता और बाहरी आँगन
आँखों ही आँखों में भीतरी आँगन को जाने
किस-किस की दुहाई दे कर मना रहा होता।
अब आपको क्या बताना, बाहरी और भीतरी
आँगन के बीच की जुगलबन्दी से कभी-कभी घर
ऐसे टूटते कि टूट-फूट पीढ़ियों तक चलती रहती
मुकदमों की तरह। दो आँगन वाले मकानों का
द्वैत या अद्वैत से लेना-देना कुछ न था तो भी
उनका भेद अभेद ही रहा।