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देह का पुद्गल / दिनेश कुमार शुक्ल
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देह का पुद्गल
बाँध कर
हाँ बाँध कर टकटकी
देखो तो
शून्य आकाश में भी
बनने लगेंगे तारे
हंस-सी
तुम्हारी ओर
उड़ती चली आएगी
एक नीहारिका
दक्षिण दिशा में भी
उदय होगा एक ध्रुवतारा
आँख से देखना
और रचना ब्रह्मांड
एक ही बात है
तुम्हारी देह का
पुद्गल भी तो
विस्फोट होते तारों की
भट्ठी में ही बना था
याद करो!