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दो पँक्तियाँ / अलिक्सान्दर त्वरदोफ़्स्की / अनिल जनविजय

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मेरी घिसी-पिटी पुरानी डायरी में लिखी हुई हैं
दो पंक्तियाँँ उस शूरवीर लड़के के बारे में
जो 1940 में मारा गया था
फ़िनलैण्ड की ज़मीन पर जमी हुई बर्फ़ में।
 
बच्चों जैसा उसका छोटा-सा शरीर
पड़ा हुआ था वहाँ बड़े भद्दे ढंग से
ठण्ड से बर्फ़ में चिपक गया था उसका ओवरकोट
टोपी उसके बदन से दूर गिरी पड़ी थी

ऐसा लग रहा था जैसे वह लड़का वहाँ पड़ा हुआ नहीं
भाग रहा हो अभी भी दुश्मन के पीछे
पर ज़मीन पर पड़ी बर्फ़ ने उसे जकड़ रखा था ...

उस भयानक और बेरहम लड़ाई में —
मैं अभी तक यह समझ नहीं पाया
उस बच्चे पर ही मुझे क्यों रहम आया
जैसे पड़ा हुआ था मैं ख़ुद ही मरा हुआ,

अकेला वहाँ ठण्ड से जमा हुआ,
छोटा-सा, मरा हुआ
उस डरावने युद्ध में अनाम 
भुला दिया गया, छुटकू, बेकाम !

1943
मूल रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय

लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
            Александр Твардовский
                     Две строчки

Из записной потертой книжки
Две строчки о бойце-парнишке,
Что был в сороковом году
Убит в Финляндии на льду.

Лежало как-то неумело
По-детски маленькое тело.
Шинель ко льду мороз прижал,
Далеко шапка отлетела.

Казалось, мальчик не лежал,
А все еще бегом бежал
Да лед за полу придержал…

Среди большой войны жестокой,
С чего — ума не приложу,
Мне жалко той судьбы далекой,
Как будто мертвый, одинокий.

Как будто это я лежу,
Примерзший, маленький, убитый
На той войне незнаменитой,
Забытый, маленький, лежу.

1943 г.