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बड़े हो गए हम/ शशि पाधा

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 ज़रूरी नहीं अब
 किसी का समर्थन
बड़े हो गए हम |

औरों की सुनी थी
मन की न मानी
कमी थी,या खूबी
न जानी,पहचानी

  विवादों ने घेरा
    परे हो गए हम |

अनचीन्हा कोई
 भय था, घुटन थी
बड़ी उलझनों की
 तीखी चुभन थी

 कसौटी पे घिस के
 खरे हो गए हम |

 थकने लगे थे
निभाते-निभाते
दुविधाएँ मन की
छिपाते छिपाते

    बिसराई पतझड़
     हरे हो गए हम|
   
सुख दुःख को जीवन
तराजू पे तोला
कभी तो अडिग थे
कभी धीर डोला

   ले संयम की लाठी
    खड़े हो गए हम|
   
सूरज ना पूछे
उगने से पहले
ना रुकतीं हवाएँ
उड़ने से पहले

  कड़ी धूप झेली
    कड़े हो गए हम
    बड़े हो गए हम !!!!