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भूल गये जीतना / शशि पाधा

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 ज़िन्दगी की दौड़ में
भागते-भागते
भूल गये जीतना
हारते-हारते |

मोड़ थे, पड़ाव थे
हिम्मतें भी साथ थी
दिख रहीं थीं मंजिलें
दो कदम की बात थी

       हम वहीं खड़े रहे
        अवसरों को टालते
     भूल गये ----

पंछियों-सा वक्त फिर
पंख बाँध उड़ गया
बहेलियों की आँख में
धूल झोंक मुड़ गया

 
    जाल ही उलझ गया
       डोरियों को नापते
       भूल गये --

नसीहतें, हिदायतें
ठीक से सुनी नहीं
सही ग़लत के फेर में
ठीक राह चुनी नहीं

     रह गये ठगे ठगे
      भरम अनेक पालते
     भूल गये ----