भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ठीक किस बखत / बबली गुज्जर

Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:34, 3 जून 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बबली गुज्जर |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ठीक-ठीक किस बखत
किसी को बतला देना चाहिए था
कि कुछ भी तो ठीक नहीं है ज़िन्दगी में

ठीक किस बखत बाबा के गले लगकर
उनके कह देना चाहिए था कि
हमें एक लंबे समय से इच्छा थी इसकी

ठीक किस बखत आवाज़ ऊंची करके
पुकार लेना था , वापस जाते प्रेमी का नाम
और मत जाओ कहकर बचा लेनी थी प्रेम-कहानी

ठीक किस बखत मान लेना चाहिए था
कि ये अकेलापन खा जाएगा हमें एक दिन
छत की कड़ियों पर लगे घुन की तरह

और ये जिसे हम अपना घर कहते हैं
इसकी चारदीवारी ऐसे टूट कर गिरेगी
कि लहूलुहान हो जाएगी ज़ख्मी पीठ

ईश्वर को भी तो नहीं ज्ञात था जैसे
ठीक ठीक कितना दुख देना चाहिए
कि कोई जीते जी मर ही न जाए

तेज़ रोते रोते बेसुध होने के बाद
ठीक कितनी देर बाद याद आती है
पीछे रह गए लोगों के लिए जीना भी है

किसी अपने के मर जाने के बाद
ठीक कितने दिन बाद दोस्त से बोल देना था
अब सब ठीक हो गया है दोस्त

हमने आत्मा का एक बडा हिस्सा
रो रो कर कर दिया है कितना नम,

हम ज़िन्दगी में दुख के पक्के,
और हिसाब के कच्चे लोग हैं!