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तुम्हारी मुस्कराहट / निकअलाय रेरिख़ / वरयाम सिंह

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तट पर हम गले मिले और अलग हुए,
सुनहरी लहरों में छिप गई हमारी नाव !

द्वीप पर हम थे, हमारा पुराना घर था
मन्दिर की चाबी हमारे पास थी
हमारे पास थी अपनी गुफ़ा
अपनी चट्टानें, देवदार और समुद्री चि़ड़ियाँ
हमारी अपनी थी दलदल
और हमारे ऊपर तारे भी अपने।

हम छोड़ देंगे द्वीप
निकल जाएंगे अपने ठिकाने की तरफ़
हम लौटेंगे, पर सिर्फ़ रात में।
बन्धुओं कल हम जल्दी उठेंगे
सूर्योदय से पहले
जब चमकीली आभा छाई होती है पूरब में
जब नींद से सिर्फ़ पृथ्वी उठ रही होती है
लोग अभी सो रहे होंगे,
उनकी चिन्ताओं के सीमान्त से बाहर
हम मुक्त होकर जान सकेंगे अपने आप को ।

दूसरे लोगों से निश्चित ही भिन्न होंगे ।

सीमान्त के पास पहुँचने पर
चुप्पी और ख़ामोशी में हम देखेंगे —
मौन बैठा हुआ वह उत्तर में हमें कुछ कहेगा ।
ओ सुबह, बताओ किसे ले गई थीं तुम अन्धकार में
और किसका स्वागत कर रही है
तुम्हारी मुस्कराहट ?


मूल रूसी भाषा से अनुवाद : वरयाम सिंह