भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नयी राहें बनानी है / प्रेमलता त्रिपाठी
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:45, 21 जून 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमलता त्रिपाठी |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
गहन तम की शिलाएँ तोड़कर मुझको गिरानी है ।
हमेशा रश्मियाँ आयें वही तो भोर लानी है ।
किरण के रंग बादल पर उकेरूँगी सदा अभिनव
खिलेंगे फूल राहों में लिए नूतन कहानी है ।
मिटेगें खार क्रंदन भी,समय की अटपटी चालें
भले हो दूर मंजिल भी नयी राहें बनानी है ।
दिया तल में अँधेरा हो सदा यह मान बैठे हम,
कथा आँसू कहेंगे यह कहानी बेजुबानी है।
विवशता में जिया करते छलें क्यों श्वांस अपनों की,
रुलाया है बहुत तुमने दुखों की अब रवानी है ।
व्यथायें प्रेम की कब तक रहेंगी सुप्त तन मन में,
उजाले गीत बनते जो वही कविता सुनानी है ।