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देती है मधुमास, / प्रेमलता त्रिपाठी
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कविता मोहक भाव कलश है,भरते हम उदगार ।
मुखरित वाणी से छलके जो,करे प्रीति संचार।
नख शिख वर्णन से न सजे जो,अंतस रहे अधीर,
साहस और रवानी भर दे,कविता वह आधार ।
एकाकी मुस्कान भरे मन,सृजन सहज का साथ,
नृत्य करे तन तरुवर झूमें, रसवंती जस नार ।
भोली सुखदा महक उठे,कोमल कलिका छंद,
घुल मिल जाते कवि रचना में,डूब करें अभिसार ।
रहते मद में चूर सदा जो, दंभ भरें आकाश
करें खोखला अंतस प्रतिफल,अंत हुए लाचार ।
बाधाओं को चूम प्रकृति भी, देती है मधुमास,
सुख दुख के ताने बाने का,सुंदर यह उपहार ।
माँ की ममता छुअन सादगी,तनिक न कटु आभास,
प्रेम सृजन आँचल की छाया,रग रग भरे दुलार ।