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अगर मेरी मानो / रश्मि विभा त्रिपाठी
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एक सलाह
अगर मेरी मानो
तो जरा जानो
अपनी वह बात
क्यों जिसे सुन
मेरी आँखों से फूटी
पीर की धारा
यह जीवन सारा
वसीयत में
तुम्हारे नाम पर
मैंने क्यों लिखा
जिस- जिसको दिखा
हस्ताक्षर में
मेरी लिखावट का
पुख्ता निशान
उन सबकी शान
मिट्टी में मिली
तुमसे ही क्यों खिली
मुरझाए- से
मन में मौलसिरी
मुझपर से
फिर नजर फिरी
सारे जग की
तब भी क्यों न डरी
उमंगों से ही
सदा जो रही भरी
सुनते झरी
विछोह के दो बोल
सुनो! चाहो तो
देना गरल घोल
साँस- साँस में
परंतु वह बात
मेरे जीते जी
तुम्हें मेरी सौगंध
अधरों पर
फिर कभी न लाना
तुम्हीं को प्राण माना।