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एकता की आन हो / प्रेमलता त्रिपाठी
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इंसान हो इंसानियत का मान हो ।
हम एक हैं जब एकता की आन हो ।
नित सत्य दर की खोज हम भटके मगर,
कस्तूरियाँ अंतस बसी संज्ञान हो ।
देना उजाला मानकर जलता दिया,
बुझता नहीं वह स्नेह का यदि दान हो ।
सोयी सुबह है रात्रि के ही अंक में,
नैराश्य विचलित मन उसे यह भान हो ।
नव गीत अंकुर गर्भ में हो पीर बन,
हो प्रस्फुटन जब प्रेम का सहगान हो ।