भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नीतियाँ विशाल हों / प्रेमलता त्रिपाठी
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:24, 23 जून 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमलता त्रिपाठी |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
नीतियाँ विशाल हों ।
कर्म भी कमाल हों ।
मान दान हो भले
धर्म की मिसाल हों ।
दीप साधना जले,
सत्य का धमाल हों ।
पुण्य के प्रभाव से,
अंत पाप काल हों ।
अस्मिता बची रहे,
ध्वस्त हो कुचाल हों ।
दिव्य शक्तियां जगें
पंथ बेमिसाल हों ।
द्वेष भावना मिटे,
प्रेम से निहाल हों ।