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धुंध को निवारती / प्रेमलता त्रिपाठी

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धर्म पंथ संप्रदाय नीति रीति जानती।
गा रही विकास गीत सत्य प्रीति भारती।

गुनगुना भ्रमर चले महक उठी कली गली
प्रात मुस्करा उठी सुमन सुधा बिखेरती।

है अशेष अर्चना विशेष भक्ति भाव से,
ध्येय प्रेय दिव्य शक्तियाँ हमें सँवारती।

ज्ञान रश्मि की विभा तमस मिटा रही सदा,
ओज खोज वीत राग धुंध को निवारती।

मर्म जानिए सभी उजास कामना लिए,
प्रेम भृत्य भावना सरस हृदय बाँचती।