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कंपित धरती रानी है / प्रेमलता त्रिपाठी

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मृगतृष्णा में डूबे जन को, कलह नीति अपनानी है।
भूख गरीबी कौन मिटाये, सबने अपनी ठानी है।
 
बना देश है कुरुक्षेत्र अब, महाप्रलय-सा घहराया,
टूक टूक है शांति साधना, कंपित धरती रानी है।
 
अंतस आग छिपा बैठे हम, अचल शिला बनकर सहते,
क्रुद्ध तान कब छेड़ेगे हम, अरि की नींद उड़ानी है।

खन खन करती मोहक स्वर यों, जीवन गीत भुला बैठे,
माते ऐसा रूप सँवारो, तुमको अलख जगानी है।

चम चम चमके श्रमिक पसीना, गीत खुरदुरी खादी के,
प्रेम तंतु रेशम के पहने, सौंदर्य भरी जवानी है।