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यह तृष्णा संसार / प्रेमलता त्रिपाठी
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प्रभु जाना मुझको भव बंधन पार ।
हँस हँस पहनूँ मैं काँटों का हार ।
हठी नहीं छूटे तन-मन व्यामोह,
पग - पग पकड़े यह तृष्णा संसार ।
लुटा दिया अनुपम जीवन अनमोल,
शनैः शनैः रीता घट यौवन सार ।
स्नेह सिक्त भावों से नम अभिराम,
पल में पलकें देती सब कुछ वार ।
प्रेम पृष्ट पर लिखती हूँ संदेश,
मूक नहीं कोमल प्राणों का तार ।