भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नटखट फागुन / प्रेमलता त्रिपाठी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:32, 23 जून 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमलता त्रिपाठी |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नटखट फागुन केसर, रहा उड़ाय ।
भीजै तन मन क्यारी,अधिक सुहाय ।

भरी अबीरा थारी, पीत गुलाल,
हरत सबै हिय भारी, देत भुलाय ।

हरी भरी अँगनाई,करत धमाल,
हर्षित मन अविकारी,लेप लगाय ।

फूलत बगिया बौरे, झरत रसाल
मनु लसै भृंग तन धारी,मति भरमाय ।

होरी बरजोरी सखि,भरत हुलास,
थिरकै बाल लली मन,थिर न रहाय ।