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शृंगार नहीं करते / प्रेमलता त्रिपाठी

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काँटों में खिलते फूल इसे,हम इनकार नहीं करते।
हँस कर संघर्षों में जीना,क्यों सुविचार नहीं करते ।

सुंदर काश्मीर की घाटी,जँह हँसे मखमली कलियां,
स्वर्ग धरा से रूठ गये हम,अब शृंगार नहीं करते।

सत्य अहिंसा की प्रतिपालक,जब रही धरा सदियों से,
यदि करें युवा पत्थर बाजी,हम प्रति कार नहीं करते ।

कातर होकर जीवन अर्पण,कभी न थी अपनी गरिमा,
बदलें मन आतंक हटाकर, सद व्यवहार नहीं करते ।

जिस बल पर पायी आजादी,बलिदानों का मोल नहीं,
कर्म नहीं स्वदेश हित हम क्या,उससे प्यार नहीं करते ।