भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पल सुहाना चाहिए / प्रेमलता त्रिपाठी
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:41, 24 जून 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमलता त्रिपाठी |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मीत सच्चा मन मिले वह,पल सुहाना चाहिए,
शुद्ध अपनी धारणा हो, पथ बनाना चाहिए ।
प्राण घाती स्वार्थ तजिए,मिल सके खुशियाँ तभी,
एक दूजे से मिले वह, प्यार पाना चाहिए।
जीत घुटने टेक दे उस, पीर का भी अंत हो,
हार के बदले विवशता, को मिटाना चाहिए।
अंत कर दे जो तमस का,हो उजाला हर सुबह,
पथ दिखाता ज्ञान दीपक, वह जलाना चाहिए ।
मीत जो बनते रुकावट, नासमझ हैं वे सदा,
हो रहे गुमराह उनको, राह दिखाना चाहिए ।