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रूठते देखा, / प्रेमलता त्रिपाठी
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कली कशमीर तुमको रूठते देखा,
तुम्हें ले हाथ पत्थर दौड़ते देखा।
जहाँ महके खिले बागान फूलों से,
मुखौटा आज घाती धारते देखा।
सजी जो वादियाँ सुंदर नदी झेलम,
वहीं गोले दना दन दागते देखा।
कहा है स्वर्ग भारत का जिसे हमने,
धरा के स्वर्ग को अब मेटते देखा।
नयन थी प्रीति करुणा के लिए आँसू,
सदा परमार्थ जिनको जूझते देखा।
पुनः लौटा नहीं सकते विदा करके,
नमन उनको तिरंगा ओढ़ते देखा।