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जलती दीपशिखा / प्रेमलता त्रिपाठी
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विहँस विहँस मनभावन,जलती दीपशिखा ।
सिहर सिहर लौ कंपन, करती दीपशिखा ।
टिम टिम घटता यौवन,क्षण अवसाद नहीं,
अनुपम तेरा अर्पण, महती दीप शिखा ।
तन-मन महकाती यों,मृदुल मधु कोष ये ,
ज्यों ज्यों लिखें तूलिका,गहती दीपशिखा ।
तरल तरल हृद आँगन, निरत आलोक से ,
स्नेहिल सुरभित हुलसित,बहती दीप शिखा ।
पल निमिष न जाने युग,सघन घन चाँदनी,
नेह प्रेम है नित-नित, भरती दीप शिखा ।