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हरे हृद अभिमान / प्रेमलता त्रिपाठी

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माँ ममता मयी जगत जननी,मुझे दो वरदान ।
ढूंढ रहा मन प्यार तुम्हारा,हरे हृद अभिमान ।

विशालाक्षि हे अष्ट धात्री, स्नेह विनीत अपार
कुंकुम रोली चंदन माला, भरो माँ मुस्कान ।

जग से न्यारी ममता वारी, जगाये मन आस,
लाल चुनरिया ढोला वाली, रीति धरे विधान ।

सकल साधना शंकर प्यारी,अमर करें सुहाग,
संताप हरी माँ आकर देखो,शस्त्र अरि संधान ।

नगर डगर आतंक बढ़ा अब, नर्तन करते शत्रु,
दुर्गा रूप अब धरो भवानी,कष्ट हरो सुजान ।