भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दृढ़भाव रहता है / प्रेमलता त्रिपाठी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:47, 25 जून 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमलता त्रिपाठी |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रोक ले हमको न कोई मार्ग क्षमता है ।
फूल या काँटे मिले दृढ़ भाव रहता है ।

आग पानी का समन्वय है कहाँ संभव,
कार्य कारण मेल से होती सुगमता है।

भीरु कातर की दशा कमजोरिया मन की,
आत्म बल से दूर होती यह विषमता है।

लक्ष्य लेकर बढ़ चलें हम भाग्य हाथों में,
हो चुनौती पूर्ण राहें कर्म फलता है।

चित्त निर्मल चाहिए यदि भाव बंधन हो,
हो निराशा प्रेम जीवन पीर सहता है।