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आती रहें बहार / प्रेमलता त्रिपाठी
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नववर्ष मंगल मय हो अपना,खुशियाँ मिले हजार ।
स्नेह सदा मिल बाँटें हम सब, आती रहें बहार ।
खाली क्यों हो रंग गगरिया,शीतल करती जाय,
शब्द स्वर दो मुझे मातु हो, छंदों की बौछार ।
लहर उठे सरसी से सागर,भाव विकल उमगाय,
गीतों की गागर से निकलें,मन के सब उदगार ।
रसमय वाणी घोल रहे सब, भीगे सरस सुजान,
दूर आपदा जीवन महके, सुरभित हो संसार ।
नहीं तुम्हें जाना बसंत अब, करती मैं मनुहार,
पुष्प, रसाल ,सरसों,कोकिला,सब तेरे अवतार ।