भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आती रहें बहार / प्रेमलता त्रिपाठी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:24, 25 जून 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमलता त्रिपाठी |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नववर्ष मंगल मय हो अपना,खुशियाँ मिले हजार ।
स्नेह सदा मिल बाँटें हम सब, आती रहें बहार ।

खाली क्यों हो रंग गगरिया,शीतल करती जाय,
शब्द स्वर दो मुझे मातु हो, छंदों की बौछार ।

लहर उठे सरसी से सागर,भाव विकल उमगाय,
गीतों की गागर से निकलें,मन के सब उदगार ।

रसमय वाणी घोल रहे सब, भीगे सरस सुजान,
दूर आपदा जीवन महके, सुरभित हो संसार ।

नहीं तुम्हें जाना बसंत अब, करती मैं मनुहार,
पुष्प, रसाल ,सरसों,कोकिला,सब तेरे अवतार ।