भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भव बंधन का मान करे / प्रेमलता त्रिपाठी
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:26, 25 जून 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमलता त्रिपाठी |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
धरा गगन की प्रीति सयानी,जीव सकल संधान करें ।
कठिन साधना पंचतत्व की,भव बंधन का मान करें ।
प्रीति समाये नैनों में नित, ऊँचा है भावों नाता,
शस्य श्यामला पावन धरणी,तन-मन मोहित गान करें ।
गंग यमुन के कूल बसे, अवध राम की श्याम गली ,
धर्म मर्म मर्यादा जिनकी ,नित्य हृदय अवधान करें ।
भरे जहाँ आलोक धरा पर,लाली ले उदय अस्त की,
नवल चेतना लेकर आये,रविकर सतत विहान करें ।
निर्झर बहकर सागर बनते,पावन गंगा स्रोत यहीं,
मलिन न होने पाये छाया,पुण्य सलिल जल स्नान करें ।
तनमन अर्पित वीरभूमि का,जनअंतस क्यों व्यथित हुआ,
कटुता आपस की दूर करें,अमल नीति अभिमान करें ।