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नयी राह चलना / प्रेमलता त्रिपाठी
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नयी रोशनी में नयी राह चलना ।
दिवा स्वप्न से तुम सदा ही सँभलना ।
चलो साहसी बन सफलता मिलेगी,
खुशी को अहं में नहीं तुम बदलना ।
कहीं मौन मजबूरियाँ बन न जाये,
नहीं सत्य पथ से कभी तुम फिसलना ।
प्रकृति संपदा जो मिली है सुहानी,
उसे स्वार्थ अपने नहीं तुम मसलना ।
मिले रात काँटों भरी सेज बनकर,
न भयभीत होना नहीं तुम मचलना ।
घड़ी धैर्य की भी न छोटी बड़ी हो,
इरादे रहें नेक मन से न ढलना ।
बनो प्रेम दीपक तमस को मिटा दो,
अगर मोम बनकर तुम्हें हो पिघलना ।