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मेघा, तुम्हें बुलाना है / प्रेमलता त्रिपाठी
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तुम बिन सूना सावन मेघा,तुम्हें बुलाना है ।
तरुवर डाली झूलें , झूमें , गीत सुनाना है ।
घुंघराले अलकों में तेरे,छिपकर चंदा भी
आँख मिचौली खेले झाँके,लगे सुहाना है।
धरती प्यासी तृण-तृण जागे,रिम-झिम बूँदों में,
सोंधी माटी की खुशबू जो, उठे लुभाना है ।
जल तरंग में झूमे नाचें,महके जन जीवन,
सरस फुहारों से धरती की,तपन मिटाना है ।
वैभव प्रेम तुम्हारा पाऊँ, मेघ मल्हार से
तीज सावनी गीत सुनाकर ,तुझे रिझाना है ।