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जागो तभी सबेरा / प्रेमलता त्रिपाठी

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यादें मिटे न मन से,प्रतिपल उन्हें जगाया ।
सपने लगे हमारे, जग रीति ने लुभाया ।

बचपन रहा सलोना,चिंता नहीं न उलझन,
मस्ती भरे दिनों को, जाता नहीं भुलाया ।

होगा समय न अपना,सबने खरी सुनायी
गढ़ते रहे फँसाने, मन से नहीं लगाया ।

कर्त्तव्य बोध हरपल,तृष्णा तनिक न मन में,
संजीदगी सदा से , रिश्ते सभी निभाया ।

माता पिता हमारे ,हैं ज्ञान दीप अपने,
ये रोशनी हमारी, हो व्यर्थ में न जाया ।

जागो तभी सबेरा, संकल्प प्रेम का यह
आकाश चूमने की,उम्मीद नित जगाया ।