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सुख, जैसे सपना / रश्मि विभा त्रिपाठी

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सबके लिए
हम जितना मरे
वे सब मिले
बस बिष से भरे
यही जीवन
यही भाग्य अपना
अपने लिए
सुख, जैसे सपना
भटकें हम
रोज बीहड़ बन
कोई नहीं अपना।
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