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प्रार्थना / अपअललोन ग्रिगोरिइफ़ / वरयाम सिंह

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हे ईश्वर, कृपादृष्टि की अधिक नहीं तो कम से कम एक किरण से,
प्रेम की एक चिंगारी से आलोकित करो मेरी आत्मा को,
जैसे अथाह में, जैसे तलछट में, उद्वेलित सब कुछ उसके भीतर,
उद्वेलित हैं अवशेष कष्टकारी, लालची, दहकती इच्छाओं के ...
हे पिता, विक्षिप्त, भयावह, प्राणांतक है मेरी यह उदासी !

अभी जीवन का पूरा क्षरण नहीं हुआ इस निष्फल संघर्ष में,
विद्रोह कर रही हैं शेष बची शक्तियाँ चैन की परवाह किए बिना,
काराग़ार के अन्धकार से तुम्हारे भीतर निबटने के लिए छटपटा रही हैं वे !
उनकी कराह सुनो, ओ मुक्तिदाता, सुनो उनकी प्रार्थना,
उनकी भयावह, प्राणांतक उदासी ने बहुत दुखाया है मुझे ।

विलम्ब न करो चैन और शान्ति का स्रोत उपलब्ध कराने में,
जीवन दो, प्रकाश दो उन्हें, बताओ कहाँ है अच्छाई और बुराई की सीमा
अपने प्रेम का आलोक और ऊर्जा प्रदान करो;
प्रदान करो, हे ईश्वर, शान्ति और जीवन उन्हें ।

1845

मूल रूसी भाषा से अनुवाद : वरयाम सिंह

और लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
                    Аполло́н Григо́рьев
                             Молитва

О Боже, о Боже, хоть луч благодати Твоей,
Хоть искрой любви освети мою душу больную;
Как в бездне заглохшей, на дне всё волнуется в ней,
Остатки мучительных, жадных, палящих страстей...
Отец, я безумно, я страшно, я смертно тоскую!

Не вся еще жизнь истощилась в бесплодной борьбе:
Последние силы бунтуют, не зная покою,
И рвутся из мрака тюрьмы разрешиться в Тебе!
О, внемли же их стону, Спаситель! внемли их мольбе,
Зане я истерзан их страшной, их смертной тоскою.

Источник покоя и мира, - страданий пошли им скорей,
Дай жизни и света, дай зла и добра разделенья -
Освети, оживи и сожги их любовью своей,
Дай мира, о Боже, дай жизни и дай истощенья!

1845