भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैं गोया हूँ / अन्द्रेय वज़निसेंस्की / श्रीकान्त वर्मा
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:49, 7 जुलाई 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अन्द्रेय वज़निसेंस्की |अनुवादक=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मैं गोया हूँ
बर्बर युद्धक्षेत्र का जब तक दुश्मन की नोकीली चोंच
मेरी आँखों को न चींथ कर बाहर कर दे तब तक
मैं दुख हूँ
मैं युद्धोन्मुख हूँ
’41 के बर्फ़ीले अन्धड़ में
बुझे जा रहे अंगारों-से नगर
भूख हूँ
मैं उस औरत की
गरदन हूँ, सूली पर लटकाई जाकर सूने चौरस्ते
जिसका शव
घण्टे-जैसा झूल रहा है
मैं गोया हूँ
ओ शापों की वर्षा !
घुस आए मेहमानों के अवशेष
फेंककर अस्ताचल में
ठोंक दिए हैं मैंने हरदम — आसमान पर
तारे — जैसे कील
मैं गोया हूँ ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : श्रीकांत वर्मा