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जिण धुरी टिक्योड़ा है सुपना / नीरज दइया

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सिरजण री खिमता लुगाई नै मिनख करता कीं बेसी मिल्योड़ी हुवै। विधना री बेजोड़ कविता है- लुगाई। जूण रा सगळा सुपना लुगाई साकार करै। घर नै घर बणावै। सिरजण रा सुपना बिना लुगाई रै रंग-बिहूणा अर आधा-अधूरा। जीवण मांय सगळा रंग लुगाई पूरा करै। उणरा कित्ता घर-नांव-रिस्ता बणै-बदळीजै, पण उण री हूंस नै सिलाम। बा हरेक बगत का कैवां जुगां सूं मिनखाजूण नै मारग दियो।
सिरजण रै आंगणै सगळा बरोबर। सिरजण बिना किणी भेदभाव अर पखापखी रै हुवै। सिरजण घणो लूंठै अरथ राखै। अठै आपां लेखन री बात करां तो लेखन रै सीगै मिनख अर लुगाई रै हिसाब सूं भेद करणो साव खोटी बात। साहित्य मांय किणी री जात का उमर मायनो नीं राखै। कोई पण बात री अहमियत समग्रता मांय हुवै। समग्रता नै अरथावण खातर उण नै न्यारै-न्यारै तरीकां सूं देखणो-परखणो ई लाजमी लखावै। राजस्थानी कविता री बात करां तो साहित्य री सगळी विधावां मांय बेसी काम कविता रै सीगै हुयो, पण महिला-कविता पेटै अजेस सवाळ बात ई कोनी हुई। कैय सकां कै दुनिया री आधी आबादी री बात करणी, असल मांय पूरी आबादी नै विगतवार जाणणो हुय सकै।
कविता री बात सूं पैली भासा री बात जरूरी लखावै। कारण- मिनखाजूण री पिछाण भासा सूं हुवै। भासा रै विगसाव मांय मिनखाजूण रो मारग हुवै। आपां री भासा राजस्थानी नै ना संवैधानिक मान्यता मिल्योड़ी अर ना राज-काज मांय दूजी राजभासा रो मान मिल्योड़ो। आज भासा नै बचावण री दरकार बधगी है। आ पीड किण नै जाय’र कैवां कै इत्तै बरसां पछै घर-परिवार मांय जिकी भासा पांगरणी चाइजती, पांगरी कोनी। अंग्रेजी अर हिंदी माध्यम भासा रै पाण बाळपणै मांय टाबरां री भासाई जड़ कटती जाय रैयी है। टाबर री पैली गुरु मा हुवै। मा अर घर-परिवार सूं टाबर भासा सीखै। जरूरत इण बात री है कै आपां आपांरी मा-भासा नै बचावां-बधावां। भासा रै इण बिगड़तै कारज नै लुगायां ई संवार सकै। म्हारो मानणो है कै जिण धुरी टिक्योड़ा है सुपना, बा धुरी फगत अर फगत लुगाई है। इण खातर आ पोथी- 'लुगाई नै कुण गाई’ कीं बेसी अरथावूं हुय जावै।
घणै सूतम री बात आज तांई जित्ता आधुनिक कविता रा संकलन साम्हीं आया, उणा मांय इक्की-दुक्की महिला रचनाकारां री कवितावां भेळी राखीजी। विगवार चरचा मांय ई बै कठैई कोनी लाधै। जागती जोत, माणक आद कीं पत्रिकावां राजस्थानी सिरजण अर महिला साहित्यकारां पेटै कीं छुट-पुट काम कर्यो। राजस्थानी कविता जातरा मांय 'लुगाई नै कुण गाई’ पोथी पूरै कविता-दीठाव मांय अेक जरूरी दीठाव राखण रो प्रयास है।
लुगायां रै लेखन री अंवेर करीजण रै कामां री बात करां तो चावी-ठावी लेखिका-संपादक शारदा कृष्ण री संपादित पोथी 'आंगणै सूं आभो’ अर कवि मधुकर गौड़ री 'सोळा जोड़ी आंख’ (कहाणी-संग्रै) फगत दोय पोथ्यां निगै आवै। बीसवै सईकै रै महिला लेखन माथै केंद्रित आपरी संपादित पोथी री भूमिका मांडता शारदा जी लिखै- 'राजस्थानी महिला लेखन री सरुआत मीरा सूं मानी जावै, क्यूंकै इण सूं पैली कोई लिखित साहित्य किणी राजस्थानी महिला रो उपलब्ध कोनी।’
अठै ओ खुलासो ई जरूरी लखावै कै महिला लेखन री विगतवार जाणकारी राजस्थानी साहित्य रै इतिहास ग्रंथां मांय कोनी। कवि-संपादक जुगल परिहार मुजब- 'राजस्थानी साहित्य रै इतिहास सूं संबंधित जित्ती ई पुस्तकां प्रकासित हुई है, उणां मांय महिला लेखन नै लेय’र कोई खास चरचा नीं हुई है। आ इज वजै है कै आज राजस्थानी साहित्य मांय हुयोड़ै महिला लेखन री कोई साफ छिब सांमी नीं आय सकी है।’ (माणक : दिसंबर, 2002)
सोध-खोज रै कामां सूं जाणकारी हुवैला कै प्राचीन पांडुलियां मांय कित्तो-कांई महिला लेखन अजेस अणदेख्यो है। बियां भगती अर जैन साहित्य परंपरा मांय महिलावां लगोलग सिरजण कर्यो, पण उण री अंवेर-परख अजेस हुवणी बाकी।
अठै इण बात माथै विचार हुवणो चाइजै कै घर-परिवार अर समाज मांय साहित्य अर खासकर महिला कविता नै लेय’र कांई दीठ है? जे सगळा ई छियां-छियां चालसी तो तावड़ै मांय कुण चालैला? आज जद साहित्य ई समाज सूं कटतो जाय रैयो है तद राजस्थानी साहित्य अर महिला कविता री बात माथै तो संकट कीं बेसी हुवणो लाजमी है। साहित्य का कैवां कविता पेटै दीठ बणावण रो काम आलोचना करै। आपां रै अठै आलोचना पेटै घणा काम अजेस बाकी।
जे आपां राजस्थानी भासा, साहित्य अर संस्कृ ति नै आपणो घर मानां तो आ बात सवाळ समझ आवै- किणी घर मांय कोई कमी का खामी हुवै तो उण नै ठीक करण नै कोई दूजो नीं आया करै। खुद रै घर री संभाळ खुद नै करणी पड़ै अर करणी चाइजै। जे ओ घर अपां तो है, तो घर मांय किण नै आं सगळी बातां पेटै ध्यान देवणो हुवैला। किणी दूजै का बारलै री उडीक क्यूं? इण बात नै समझां कै आपां सगळा, हां जिसा हजार हां। खामियां रा गीत गावणिया ई आपां बिच्चै घणा लाधैला। बस कीं करण री मनगत ई इण रो इलाज है। अणदेख्या पखां माथै ध्यान धरां, अर जिका-जिका काम होवणो चाइजै बै करण री कीं तजबीज करां।
बरस 1971 रै आसै-पासै जद राजस्थानी नवी कविता पेटै विधिवत काम करीजणा चालू हुया, उण टैम कविता रै आंगणै महिला लेखन पग मांडणा चालू कर दिया हा। राजस्थानी खातर ओ सोध-खोज रो विसय हुय सकै कै महिला लेखन पेटै पैली कविता पोथी कद अर किण री मानी जावै? इण सवाल रो पड़ूतर - 'चंदाबरणी’ (1973) आशादेवी शर्मा (1927-2020) हुय सकै। आधुनिक राजस्थानी साहित्य रै इतिहास मांय आपां देख सकां कै प्रवासी लेखकां न्यारी-न्यारी विधावां री थरपणा करी, हुय सकै कोई प्रवासी महिला कवि री कवितावां री पोथी छपी हुवै।
लोक साहित्य सूं साहित्य री आधुनिक विधावां प्रभावित रैयी। लोककथावां अर लोकगीत समाज मांय चावा रैया। आपां रै अठै हरेक मौकै-टोकै लुगायां गीतां सूं आपरै मन रा भावां नै दरसावै। कांई इणी खातर महिला कवियां री रचनावां मांय लोकगीतां अर छंद रो असर कीं बेसी देख सकां। पोथी 'चंदाबरणी’ सूं कीं ओळ्यां देखां -
लाख बार समझायां भी तो,
मानै कोनी जीव।
रोज डागळै चढ चढ देखै,
आया कोनी पीव।
इसड़ी चिंता मांय, सूखगी, पतळी पडग़ी, गळगी।
(तावड़ी)

बायरा मघरो मघरो चाल।
धीरज रो फळ मीठो रे भाई,
धीरज रो फळ मीठो।
(बायरो)

हाथां में गागर
आंख्यां में काजळ घुळ रह्यो जी
चाली झीणो सो,
घूंघटियो काड।
हिचकी गेलै में आई जी।
(हिचकी)

प्रकृति चित्रण, पीव अर प्यारी रा रस-रंग, लोक संस्कृति रा चितरामां सूं सजी मंचीय कवितावां मांय गळै, रग अर रस रो कमाल हुया करतो। कविता खातर कीं सोभावूं बातां अर छंद रा बंधण जरूरी हा। अेक बगत हो जद कवयित्रियां आंगळ्यां माथै गिणीजती, पण आज राजस्थान रै हरेक हलकै मांय केई-केई नांव आपरी ओळख बणा रैया है। कित्ता ई कविता-संग्रै छप्या है अर भळै छपैला। आधुनिक कविता री बात करतां आपां जे जूनी पीढी री बात करां तो केई नांव साम्हीं आवै जियां- सावित्री डागा, प्रेमलता जैन अर कमला कमलेस आद। आं नांवां मांय केई नांव भळै जोड़ सकां, पण जे नांवां रै मोह नै छोड़’र कैवां तो कैय सकां कै राजस्थानी खातर गीरबै री बात- आ पीढी राजस्थानी री जोत नै सवाई करण रो लूंठो काम संभाळ्यो। केई महिला कवियां रा कविता-संग्रै तो घणा पछै साम्हीं आया पण बै ठेठ सूं लेखन सूं जुड़’र पीढियां नै संस्कारित करण रो काम कर्यो।
बरस 1974 सूं साहित्य अकादेमी नई दिल्ली रा पुरस्कार चालू हुया। आज तांई रो इतिहास देख्यां फगत एक महिला रचनाकार रो नांव उण विगत मांय मिलै। कवयित्री संतोष मायामोहन रै पैलै कविता-संग्रै 'सिमरण’ (1999) माथै अकादमी पुरस्कार-2003 मिलणो महिला कविता रो सम्मान हो। साहित्य अकादेमी सूं इण पोथी रो हिंदी उल्थो 'सिमरन’ (2005) छप्यो। संतोष रो दूजो कविता संग्रै- 'जळ विरह’ (2008) ई आपां साम्हीं है। दर्शनिक भाव भूमि माथै ऊभी संतोष री छोटी-छोटी कवितावां जियाजूण रै अनुभवां री कवितावां मानीजै। प्रेम अर घर-परिवार रो जुड़ाव संतोष री कवितावां नै नवा रंग देवै।
सा सूं सा तांई जावण री
भरपूर तजबीज करूं हूं
पण
जीवण री ऊंची-नीची
पगडांड्यां
अधबिचाळै ई
भटकावै म्हनै
अनै बिचाळै ई
खूट जावै
म्हरो जीवण-संगीत।
(नूंवो सप्तक / संतोष मायामोहन)

अठै ओ पण कैयो जाय सकै कै राजस्थानी मांय महिला कविता री जातरा बीसवीं सदी रै छेकड़ै बरसां विधिवत रूप सूं चालू हुवै। इण जातरा मांय डॉ. सुमन बिस्सा ओळखीजतो नांव है। आपरा तीन कविता-संग्रै- 'सूरज रौ सनेसौ’ (1999), 'अंतस भर्यौ उजास’ (2004) अर 'आंतरौ झीणौ है’ (2013) साम्हीं आयोड़ा। सुमन री कवितावां मांय जियाजूण भेळै प्रकृति अर मिनख रै रिस्तां री ऊंडी पड़ताळ देखी जाय सकै। गीत-गजल अर कवितावां मांय भासा-भाव अर बुणगट री खेचळ साफ निगै आवै। अनुभव अर विचार रो सांवठो मेळ सुमन री कवितावां री खासियत।
चावी कवयित्री डॉ. कविता किरण री मंच अर छंद माथै खास पकड़। आपरा च्यार कविता संग्रै - 'बखत री बातां’ (2003), 'बोली रा बाण’ (2006), 'मुखर मून’ (2006) अर 'सूली ऊपर सेज’ (2012) छप्योड़ा। छोर्यां कविता री ओळ्यां देखो - 'छोर्यां / कांई ठा क्यूं / डर जावै है / काळी रातां में / अपणी ई छाया सूं / अर काछबा ज्यूं / समेट लै / सिकोड लै अपणै अंगां नै /अपणी’ज / खाल रै मांय।’
कविता मांय राजस्थान रै सांस्कृतिक जीवण नै राखणो कम महतावूं बात कोनी, पण बगत परवाण महिला कवियां रो जूण नै देखण-समझ रो नजरियो बदळणो चाइजै। भरोसैमंद कवयित्री रूप शारदा कृष्ण ओळखीजै अर बै आपरै पैलै संग्रै- 'धोरां पसर्यो हेत’ (2004) मांय कविता रै न्यारा-न्यारा रूपां नै साधण री खिमता दरसावै। कविता असखेल कोनी, उण रो हुवणो अर नीं हुवणो आगूंच पुखता नीं हुवै। सबद अर अरथ रो सांगोपांग मेळ ठाह नीं कद किण ओळ्यां मांय सज जावै।
नीं आवै ऊफाण
चतर चितेरण रै
चूल्है चढी बटळोई मांय,
सबद अर अरथ री
दो-फाड़ दाळ रो!
भूखै री धाप हुवै कविता,
पुरस्योड़ो थाळ नीं!
(तद हुवै कविता/ शारदा कृष्ण)

राजस्थानी मांय नवी कविता रै साथै-साथै दूजी-दूजी काव्य-धारावां लगोलग चाल रैयी है। अेक बंधी-बंधाई लीक अर सीमित खोळियै सूं बारै आवण री बात कवयित्रियां माथै बेसी लागू हुवै। प्रेमलता जैन रो गीत-संग्रै 'कनकी’ (2006) रा चावा गीत बरसां कवि सम्मेलनां रै मंचां माथै सत्तर अर अस्सी रै दसक मांय सुण्या-गुण्या जाता रैया। छंद अर लय रै लेखै उल्लेखजोग आं गीतां मांय लुगाई री आंख सूं राजस्थान रै बदळतै सांस्कृतिक जीवण नै देख-समझ सकां। डॉ. करुणा दशोरा - 'गीतां री घमक’ (2012), डॉ. प्रेम जैन- 'रोसनी रा रूंख’ (2012), कमला कमलेश - 'भांत भांत रा रंग’ (2018) इणी परंपरा नै आगै बधावै।
किरण राजपुरोहित 'नितिला’ आधुनिक कविता रै आंगणै आपरी ओळख 'ज्यूं सैणी तितली’ (2011) सूं पुखता करै। किरण री कवितावां मांय लुगाई मन री व्यथा-कथा भेळै नवा बिंब अर प्रयोग ई देख सकां। मंचां माथै राजस्थानी री साख बधावण रो जस मोनिका गौड़ नै, आपरी दोय कविता-पोथ्यां- 'हथेळी में चांद’ (2012), 'अंधारै री उधारी अर रीसाणो चांद’ (2017) साम्हीं आयोड़ी। दोनूं पोथ्यां मांय मोनिका आपरै न्यारै-निरवाळै अंदाज अर भासा-बिंबां सूं प्रभावित करै। कवितावां मांय परंपरा अर आधुनिकता रो संगोपांग मेळ साधता थका कवयित्री मिनखाजूण नै बिडदावै।
ऋतुप्रिया रो कविता-संग्रै 'सपनां संजोवती हीरां’ (2013) साहित्य अकादेमी रै युवा पुरस्कार सूं सम्मानित हुयो। ऋतु रै दूजै संग्रै- 'ठा’ नीं कद हुज्यावै प्रेम’ (2018) मांय जवान होवती छोरी रा सुपना मिलै। घर री डेळी लांघती छोरी सूं लेय’र नवी-नवी परणीज’र नार किणी ढाळै खुद रै मांय-बारै बदळावां नै देखै-समझै, उण री अनुभूतियां प्रभावित करै। सरल-सहज भासा मांय मन रै भावां नै कविता रै आंगणै राखणो ऋतुप्रिया री खासियत।
सुंदर पारख री रचनात्मकता रा रंग बां री तीन काव्य-पोथ्यां मांय मिलै। 'उघड़ता अरथ’ (2015), 'काळजै मांड’र देख’ (2017) अर 'उगेरूं गीत’ (2017)। पारख री छोटी-छोटी बिना सिरैनांव री कवितावां मांय जियाजूण नै समझण-अरथावण रा जतन मिलै। अठै आपरै घर-परिवार री ओळूं री अंवेर साथै परदेस में देस खातर कळपतो मन ई प्रभावित करै।
डॉ. रचना शेखावत (1976-2019) नवी कविता रै आंगणै घणी संभावना रो नांव हो, 'अंतस दीठ’ (2017) इण बात रो पुखता प्रमाण कैयो जाय सकै। कविता में नवी बुणगट भेळै भासा री मठोठ सूं आपरी बात कैंवती अंतस दीठ री कवितावां में केई-केई जसजोग चितराम ई देख सकां।
थूं मून अर म्हैं मून
चिनीक सी दूरी
जुगां रो आंतरो
बिचाळै पसरयोड़ो
थांरो मुंडो ई
तूंबो सो कर्योड़ो।

म्हैं कीकर थिर हूं
अरे स्याणा... बायरो
वठीनै सूं बैय’र
अेक सौरम ल्यावै।
(बायरो / रचना शेखावत)

'काळजो कसमसावै’ (2017), 'आंख्यां मांय सावण’ (2019) अर 'कोरोना ञ्च पार थारी कियां पड़ैली’(2020) री रचनाकार कृष्णा आचार्य लगोलग लिखै अर आपरी कवितावां मांय वरतमान नै दरसावै। लुगाई जूण, घर-परिवार रा सुख-दुख भेळै आं कवितावां मांय प्रेम-अपणायत रा सुपना ई हिलोरा लेवता दीसै। कोराना काल मांय मिनखजूण रो लांठो भरोसो अर जूझ आं कवितावां री खासियत कैय सकां। कथाकार बसंती पंवार 'जोवूं अेक विसवास’ (2018) संग्रै रै मारफत कवयित्री रूप आपरी ओळख बणावै। दाखलै रूप बसंती पंवार री आ क्षणिका देखां - 'देवण नै / कीं उपहार नीं है / अेक मुळकण तो है / वा ई घणी / किणी नै देवण खातर।’ लुगाई रै मन री छवियां साथै आं री कवितावां मांय आधुनिकता रै पाण रिस्ता मांय आवती थोथ अर बदळाव रा चितराम देख सकां।
घणै हरख री बात कै लारलै बरसां राजस्थानी कविता रै आंगणै केई नवा कविता-संग्रै साम्हीं आया। जियां- अभिलाषा पारीक रो 'सरद पुन्यूं को चांद’ (2019) सीमा भाटी रो 'पैल-दूज’ (2019) मानसी शर्मा रो 'प्रेम, प्यार अर प्रीत’ (2019) अर डॉ. रेणुका व्यास रो 'कंवळी कूंपळ प्रीत री’ (2020)। अठै हुय सकै केई नांव छूटग्या हुवै, इण नै म्हारी सींव मानजो। क्यूं कै नांव गिणावणो मकसद कोनी। जरूरत बस इत्ती समझी जावणी चाइजै कै अंवेर करां राजस्थानी मांय ऊभी हुवती महिला कवियां री। आ पीढी असल मांय आज री भारतीय कविता रै आंगणै राजस्थानी री साख बधावण पेटै सजग हुय रैयी है।
इण ओळ मांय केई नांव अर कविता-संग्रै भळै है, जियां - डॉ. तारालक्ष्मण गहलोत रा कविता संग्रै - 'केक्टस मांय तुलसी’ (2001), 'उग्यो है नवो सूरज साम्हीं’ (2015), डॉ. लीला मोदी रो कविता संग्रै - 'लहर लहर चंबल’ (2003), कुसम जोशी रा कविता संग्रै - 'ऊंधो बायरो’ (2015), 'मनवारां क पाण’ (2015), दीपा परिहार रो संग्रै - 'आभौ’ (2018), तारकेश्वरी 'सुधि’ रो संग्रै - 'रसरंगिनी’ (2020) अर गीता जाजपुरा रो संग्रै- 'छणीक छणीक सी’क बातां’। आं पोथ्यां टाळ बीजा केई संग्रै भळै ई छप्या हुवैला। आं सगळा पेटै विगतवार जाणकारी करीजणी चाइजै।
अठै ओ पण कैयो जावणो चाइजै कै राजस्थान देस मांय सगळा सूं मोटो प्रांत मानीजै अर इण रै न्यारै-न्यारै हलकां मांय केई कवयित्रियां लोगलग सिरजण री साख बधावै। न्यारी-न्यारी बोलियां मांय सिरजण हुय रैयो है। आज जरूरत इण बात री है कै आलोचना पेटै हरेक हलकै मांय रचनाकार आगीवाण बण महिलावां री रचनात्मकता री अंवेर करै। अकादमी घणै बरसां सूं बंद है अर पोथी छपावण नै सैयोग नीं मिलण सूं ई केई पोथ्यां साम्हीं आवण सूं रैयगी। सरकार अर किणी संस्था री बाट जोवण री जरूरत कोनी, जरूरत बस इत्ती है कै आपां सगळा आपां रै आसै-पासै हुयै काम री संभाळ करां अर हुवतै काम री अंवेर करणी जरूरी समझा। इण ढाळै रै सगळै कामां सूं महिला लेखन री खरोखरी तसवीर साम्हीं आवैला। आपनै 'लुगाई नै कुण गाई’ पोथी मांय आखै राजस्थान रै न्यारै-न्यारै हलकां री कवयित्रियां नै बांचता लखावैला कै आं री सोचा-विचारी लांठी है। खुद रै घर-परिवार अर समाज री बातां भेळै बदळती दुनिया नै कविता री आंख सूं देखण-समझण री तजबीज कवयित्रियां करै। अठै कविता री कारीगरी सूं बेसी मनां रा भावां नै देखण-समझण सूं पतियारो हुवै कै आवतो काल घणो रूपाळो हुवैला।
प्रकाश अमरावत, मीनाक्षी बोराणा, संतोष चौधरी, संजू श्रीमाली, सिया चौधरी अर मानसी शर्मा आद री कवितावां मांय राजस्थान रो बदळतो समाज है, जिण मांय लुगाई रै साम्हीं संत्रास, प्रेम अर दोघाचींत है। आशा पांडेय ओझा, कामना राजावत, प्रीतिमा पुलक, मंजू किशोर 'रश्मि’ अर सीमा राठौड़ 'शैलजा’ री कवितावां मांय भासा, साहित्य अर संस्कृति नै हेमाणी रूप नीं संभाळण री पीड़ मिलैला तो लुगाई जियाजूण री अबखायां, सुख-दुख, ओळूं अर घटतै मिनखीचारै माथै चिंता रा दीठाव ई मिलैला। अंकिता 'कागदांश’, नीलम पारीक, श्यामा शर्मा, उषा प्रजापत अर भारती व्यास री कवितावां मांय अध्यात्म, लोक-संस्कृति, परपंरा, समकालीनता, सुपना साथै बगत-बगत री बातां माथै चिंतन हुयो है। अनिता जैन 'विपुला’, अलका अग्रवाल, सपना वर्मा अर सुमन मनोत जैन री कवितावां मांय लुगाई री जूझ अर जथारत सूं भेंटा कर सकां। दीपा परिहार 'दीप्ति’, रेखा लोढ़ा 'स्मित’, विद्या भंडारी, शकुंतला शर्मा, शीला संचेती, सुनीता बिश्नोलिया अर सुमन पडि़हार आद री कवितावां मांय आपां जूण रा रंगां नै अध्यात्म अर दर्शन री ऊंडी बातां साथै देख सकां।
सार रूप अेक ओळी मांय कैवां तो सरलता अर सहजता सूं बात नै कैवणो आं कवितावां री मोटी खासियत। इण पोथी री कवितावां पेटै प्रतिनिधि-संचै हुवण रो कोई दावो कोनी, पण आं टाळवी कवितावां नै बांच्यां पछै ओ पतितायो जरूर कर सकां कै आगै जद कदैई आधुनिक कविता जातरा बाबत बात करीजैला तद प्रतिनिधि कवियां मांय आं महिला कवियां रा केई नांव सामिल करणा जरूरी लखावैला।
जे आं कवितावां नै बांचता आपनै लागैला कै ओ काम अबार तांई क्यूं नीं करीज्यो तो आ इण पोथी री सफलता हुवैला। जे आपरै मन-मगज मांय आं कवितावां नै बांचती बगत कठैई आ बात घर करैला कै महिलावां घर-परिवार नै संभाळता थकां अर बीजा घणा काम करता थका इण ढाळै री कवितावां ई मांडै, जिकी प्रभावित करै, तो इण रो जस आं कवितावां-कवयित्रियां नै। ओ काम घणो पैली हुवणो चाइजतो हो।
सेवट मांय जिण महिलावां री रचनावां किण कारण सूं संग्रै मांय नीं लेय सक्यो माफी चावूं। ओ संचै फगत अेक बानगी रूप मान्यो जावणो चाइजै। संचै मांय सामिल महिला रचनाकारां रो मोकळो-मोकळो आभार कै बां आपरी कवितावां नै पोथी मांय लेवण री मंजूरी दीवी। राजस्थानी मांय इण ढाळै रा काम लगोलग हुयां, केई दूजा महिला रचनाकारां रा नांव ई साम्हीं आवैला। ओ संचै फगत नवी कविता माथै केंद्रित करीज्यो, उम्मीद करूं कै दूजा काव्य-रूपां माथै ई इण ढाळै रा संचै तैयार करीजैला। पोथी नै टैमसर रूपाळै रंग-रूप प्रकासित करण खातर भाई प्रशांत बिस्सा नै घणा-घणा रंग। आपरै विचारां री उडीक रैसी।
जै राजस्थान। जै राजस्थानी।

नीरज दइया