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नीं उडीकण री अबखाई / चंद्रप्रकाश देवल

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थूं सिंझ्या
म्हैं सूरज
हांण-फांण न्हाटतौ पूगूं थारी डेहळी

घणौ ई मन कटै
थोड़ौ ऊभ जावूं
पण करूं कांईं
थूं आवै-जावै जित्तै डूब जावूूं।