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निवेड़ौ.. / चंद्रप्रकाश देवल

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म्हारै दादा नै कोनीं मिल्यौ न्याव
क्यूं के वां दिनां
जिका लोग न्याव कर सकै हा
वां रो ई निवेड़ौ
दूजा परदेसी कर्या करता
यूं देखां तो किणनै मिळ्यौ न्याव
अेकलव्य के जाबाली नै...
घणां ई नांव है

अठै तौ आजादी सारू जूझता जूंझार नै
लूंण री चिमटी खातर
करणी पड़ी डांडी-जातरा
हथकत्या सूत सूं मेनचेस्टर ढावणौ
अबखौ नीं तौ सोरौ ई नीं हौ

इण सारू
केई कबीरां मांड्यौ आपरै वेजा रौ मंडाण
जिणमें वै बुण लेवता
जूंण रौ सगळौ सराजांम
सोगरा सूं लेय मुगती तांईं
म्हे सबदां नै अेकण ठौड़ अेकठा कर
आपरी पीड़ रै होड़ा नै अळगौ करण
उकरास हेरता रह्या फगत

कठै अर कीकर लाधतौ उकरास
अेक घटाटोप लगोलग चौमसौ हौ
समिया री अटपटी अमूंजणी में
जिकौ उघाड़ देवणौ पांतरग्यौ हौ।