आओ कुछ बात करें / मृत्युंजय कुमार सिंह
आओ कुछ बात करें
थके हुए आदमी से एकांत की,
क्लांत-से इस देश की, इस प्रान्त की
आओ कुछ बात करें!…
समुदाय के गड़े हुए नसीब की
ईसा के सलीब की,
उस पर झूलते इतिहास की
संवेदना के लाश की
घुटे हुए आवाज़ की
सड़े-गले समाज की
ख़ूनी फव्वारे उड़ाते
दानवों के राज की,
आओ कुछ बात करें!...
आओ कुछ बात करें,
डूबते संस्कार की
मूल्यों से बलात्कार की
अस्मिता को रौंदती
आचार की, व्यवहार की
घात की, प्रतिघात की,
विश्वास पर आघात की
मिलते गले जो द्वेष से
उन ढोंगियों के जात की
आओ, कुछ बात करें!...
जंग लगते, टूटते
अर्जुन के धनुष-बाण की
खेत आये युद्ध में
हतभागे उन प्राण की
कायरों के हाथों
वीरता के पिंडदान की
द्यूत में छले गए
व्यसन की, अज्ञान की
आओ, कुछ बात करें!...
बुझ गए चिराग़ की
फूट गए भाग की,
गड़ कर भी ज़मीन में
पल रहे अनुराग की
कुछ नए ध्येय की
कल्पना अज्ञेय की,
दब गए जीवन में जो
उस भावना की, श्रेय की
आओ, कुछ बात करें!...
बात करें तब तक
जब तक कि ज़ुबान है,
बात करें तब तक
जब तक कि बचे प्राण हैं
कौन जाने कब कहाँ
फिर जलजला-सा आ जाए,
जीवन के प्रमाण सब
जीवन ही फिर खा जाए
तब होगा न कोई मुखिया
न कोई मुख्तार होगा,
कट गयी ज़ुबान से
फिर न कोई वार होगा
अपनी ही तलवार से
जब सर कलम होंगे हमारे,
लाज से छुपते फिरेंगे
कल तलक के भाईचारे
इसलिए है ज़रूरी,
कि हम कोई बात करें,
जीने के उपाय कुछ
फिर से ईज़ाद करें ।
आओ, कुछ बात करें!...