भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कामना में / विशाखा मुलमुले
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:13, 25 जुलाई 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विशाखा मुलमुले |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
गर्दन झुकाने के पहले उसने दस बार सोचा
बीस बार इधर -उधर देखा
जगह का मुआयना किया
आहटों को भांपा
संकटों का संज्ञान लिया
फिर जाकर ,
सकोरे में रखे पानी में अपनी चोंच डुबाई
अपने जीवन में हमने
प्यास के चरम पर
तृष्णा को परे रख
कब इतना सोचा ?
कितनी बार तत्काल गर्दन झुकाई ?