जीवन चक्र मूल्यांकन / शुभा द्विवेदी
जीवन चक्र मूल्यांकन
ऐसा कौन-सा माध्यम
जो कर सके एक धीर गंभीर विश्लेषण प्रकृति का
प्रकृति, जिसका मूल है नव सर्जना
"क्षिति जल पावक गगन समीर"
पंच महाभूतों से आवृत प्रकृति
समय काल से परे भी और बंधी भी
सामग्रियों का प्रसंस्करण
कच्चे पदार्थ निष्कर्षण से उत्पादों का निर्माण
पर्यावरणीय प्रभावों का सटीक मूल्यांकन
कैसे संभव हो
जब प्रकृति की सबसे सुन्दर सर्जना
मनुष्य ही दोषी हो दोहन के लिए
सिर्फ स्वयं के लोभ के लिए ही
प्रकृति का अंधाधुंध हरण
क्या समुद्र का गर्जन सुनाई नहीं पड़ता
क्या वृक्षों का क्रंदन सुनाई नहीं पड़ता
या घनघोर मेघ गर्जन सुनाई नहीं पड़ता
प्रश्न अनुत्तरित हैं कौन सुने यहाँ
कैसे हो जीवन पारिस्थितिकी का मूल्यांकन
भीषण ताप को सहती हुई आज की सभ्यता
कोई है जो ले आये फिर शीतलता
पूछ रही है प्रकृति, देख रही है धरा
कोई है जो कर पायेगा संवाद फिर से
कोई होगा जो जान पायेगा
क्या छिपा है प्रकृति के गर्भ में
कौन होगा जो कर पायेगा उल्लासित पुनः
करना होगा स्वयं का मूल्यांकन
या करना होगा मूल्यांकन कण-कण का
सोचो हो रहा है क्षरण क्षण-क्षण जिसका
कैसे होगा स्पंदित जीवन फिर से
उत्तर हो यदि किसी के पास
तो आ जाना इसी नीले अनंत आकाश के नीचे
इन्तजार है संरक्षण का
इंतज़ार है अनादि काल से अन्नंत तक का।