भैया रे ! ओ भैया रे !
है दुनिया जादू- मन्तर की ।
पार समन्दर का जादूगर
मीठा मन्तर मारे
पड़े चाँदनी काली, होते
मीठे सोते खारे
बढ़ी - बढ़ी जाती गहराई
उथली धरती खन्तर की ।
अपनी खाते - पीते ऐसा
करे टोटका - टोना
कौर हाथ से छूटे, मिट्टी
होता सारा सोना
एक खोखले भय से दुर्गत
ठाँय लुकुम हर अन्तर की ।
उर्वर धरती पर तामस है
बीज तमेसर बोए
अहं - ब्रह्म दुर्गन्धित कालिख
दूध - नदी में धोए
दिग-दिगन्त अनुगूँजें हैं
मन काले- काले कन्तर की ।
पाँच पहाड़ी, पाँच पींजरे
हर पिंजरे में सुग्गा
रक्त समय का पीते
लेते हैं बारूदी चुग्गा
इनकी उमर, उमर जादूगर
जादूकथा निरन्तर की ।