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सांध्य के एकाकीपन में / शुभा द्विवेदी

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कितना मधुर है न ये सूनापन
बिना ध्वनि का संगीत
जिसे सुन पा रहा है सिर्फ मन
सुन्दर है रहना इस सूनेपन में
जहाँ बसी हैं तुम्हारी स्मृतियाँ
विद्यमान हो जहाँ आत्मा की आध्यात्मिकता में
भौतिकता तो हमेशा ही ले जाती है तुम्हें दूर हमसे
मन तो रमता है तुम्हारे प्रेम की हरियाली में
खिलते हैं जहाँ पुष्प हमारे मिलन के
साक्षी होता है ये सूनापन इस मिलन का
नहीं होता है भय जहाँ तुम्हारे जाने का
घुले रहते हो इस सांध्य के एकाकीपन में
नित्य रहते हैं हम और तुम
मेरे छोटे से ह्रदय में अपने विशाल व्यक्तितव के साथ विराजे हो
कर रहा है जहाँ यह एकाकीपन एक हमें।